“इश्क के मैदान में”

जो खेल खेल रहे हो यह खेल हमने भी खेला है..!
तुम जिस ईश्क को सुकून नाम दे रहे हो वो सुकून हमने भी लिया है..
सुकून भरे इस इश्क के मैदान में हम ही न ठहरे…!!
तुम ठहर जाओगे ये तुमने कैसे ठान लिया….!!!

अनपढ़ जाहिल गवार के छोड़ दिया उसने…!
किताबे बेच कर कंगन खरीदे थे जिसके लिए..!!!

के मनवर मालूम नहीं मर्द कैसे मुखर जाते हैं जुबान से…!!
कमबख्त यहां तो बगैर इजाजत याद करना भी गुनाह समझा है..!!!

दिल भी तुमने बनाया और नसीब भी ऐ खुदा..!!
फ़िर वो लोग क्यों दिल में है जो नसीब में नहीं है…!!!

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