“जिंदगी की तलाश में”

और क्या आख़िर तुझे ऐ जिंदगानी चाहिए आरज़ू कल आग थी आज पानी चाहिए….

ये कहाँ की रीत है जागे कोई सोये कोई रात सबकी है तो सबको नींद आनी चाहिए….!

स को हँसने के लिए तो उसको रोने के लिए वक़्त की झोली में सबको एक कहानी चाहिए….

क्यूँ जरुरी है किसी के पीछे पीछे हम चलें जब सफ़र अपना है तो अपनी रवानी चाहिए…..!!

कौन पहचानेगा “चरन” अब तुझे किरदार से बे-मुरव्वत वक़्त को ताजा निशानी चाहिए…!!!

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