“विचार और विराम: कविताएँ जो दूर तक ले जाती हैं”

ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया कटा के पर को परिंदा उड़ान से भी गया !

किसी के हाथ से निकला हुआ वो तीर हूँ जो हदफ़ को छू न सका और कमान से भी गया !

भुला दिया तो भुलाने की इंतिहा कर दी वो शख़्स अब मिरे वहम ओ गुमान से भी गया !!

तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया !

पराई आग में कूदा तो क्या मिला ‘शाहिद’ उसे बचा न सका अपनी जान से भी गया !!

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