“अकेलापन की आवाज़”

दुनियाँ तो खैर दुनियाँ, है, मेरा ख़ुद से भी फासला है ..!!
कर लिया है फ़ैसला मैंने हालत से, मैं अब तन्हा नही रोता..!!
😔😔😔
बना लेता हूँ मैं खाना अब खुद ही माँ, मैं अब भूखा नही सोता 
फिसल कर वक्त के फर्श पर उम्र ढल रही है. ..!!
बिन जिए ही लगता है जैसे जिंदगी निकल रही है..!
😔😔😔
ख़ामोश सी हैं दीवारें, मेरे दर्द को देखकर ..!!
इनकी जगह गर, माँ होती तो रो देती हैं ….!!!

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