“चाहने वालों की तरह”

हम से भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह हम ने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह…!

ख़ुद-ब-खुद नींद सी आँखों में घुली जाती है महकी महकी है शब-ए-ग़म तिरे बालों की तरह…!

तेरे बिन रात के हाथों पे ये तारों के अयाग़ खूब-सूरत हैं मगर ज़हर के प्यालों की तरह….!!

और क्या इस से ज़ियादा कोई नरमी बरतें दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह…!

जुस्तुजू ने किसी मंज़िल पे ठहरने न दिया हम भटकते रहे आवारा ख़यालों की तरह….!

ज़िंदगी जिस को तिरा प्यार मिला वो जाने हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह…..!!!

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